नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगे कि इंटरनेट कैसे चलता है-(Internet Kaise Chalta Hai)? मतलब कैसे ये चलकर एक देश से दूसरे देश जाता है, कैसे ये आपके शहर या घर तक आता है. इस पोस्ट में हम जानेंगे कि भारत में इंटरनेट कैसे पहुचता है और आपका इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आप तक कैसे इंटरनेट कैसे पहुचाता है? ये पोस्ट बहुत ही रोचक होगा इसलिए कुछ भी मिस मत करियेगा.
इंटरनेट कैसे चलता है | Internet Kaise Chalta Hai ?
ये तो आपको पता होगा कि आपके मोबाइल में मोबाइल डाटा On करने से इंटरनेट चलने लगता है. लेकिन आपके मोबाइल में जिस टावर से सिग्नल आता है उस टावर को सिग्नल कहा से मिलता है? ऐसा नहीं है कि ये टावर आकाश या बादल से सिग्नल लेता है. यहा पर कुछ अंडर ग्राउंड और कुछ Under sea केबल का केस है. Net kaise chalta hai- इसके बारे में आपको थोडा सा बेसिक ज्ञान दे देता हूँ-
दुनिया में बहुत सारे डाटा सेंटर है जैसे गूगल डाटा सेंटर, जहा के सर्वर में बहुत जानकारी स्टोर रहती है. मान लेते है आपने कोई विडियो देखने के लिए यू ट्यूब खोला और विडियो पर क्लिक किया वो विडियो गूगल डाटा सेंटर में सर्वर पर सेव था और सर्वर ने उस विडियो को समुद्र में बिछाए गए ऑप्टिकल फाइबर केबल द्वारा आपके पास के मोबाइल टावर में भेजा और टावर ने इस विडियो को आपके मोबाइल में विद्युत् चुम्बकीय तरंगो या सिग्नल के रूप में भेजा जिसके बाद आपका विडियो प्ले होने लगता है. ये डाटा सेंटर इन केबलों के द्वारा सिग्नल भेजते है. ये केबल कही न कही आपके एरिया के मोबाइल टावर से जुड़े होते है. यहा पर मानचित्र आपकी समझने के लिए है दिया गया है ताकि आपको समझने में आसानी हो कि किस तरह एक देश दूसरे देश इंटरनेट के द्वारा जुड़े है.
अगर आपको इंटरनेट से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो ये पोस्ट पढ़ सकते है इंटरनेट क्या है? इंटरनेट का फुल फॉर्म क्या है और इंटरनेट के बारे में संपूर्ण जानकारी. इसे पढ़ने से आपके जवाब मिल जायेंगे. इंटरनेट कैसे चलता है? इसे अच्छे से समझने के लिए पहले आपको इन समुद्री केबलो के बारे में जानना होगा जिनके द्वारा सारी दुनिया में इंटरनेट तेज गति से जाता है.
सबमरीन कम्युनिकेशन केबल क्या होते है?
ये विशेष तरह के ऑप्टिकल फाइबर संचार केबल होते है. इस तरह के केबल संचार या कम्युनिकेशन के लिए समुद्र में बिछाए जाते है जिससे दो या दो से अधिक देशो के बीच संपर्क बना रहे. इन्ही केबल्स के द्वारा दुनिया का 99 % इंटरनेट ट्रैफिक आता है. और बाकि 1% satellite इंटरनेट से आता है. इन केबलो में भौतिकी के ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी का प्रयोग होता है. इनमे डाटा ट्रान्सफर की स्पीड Terabits per second में होती है. जबकि वर्ष 1866 में ये स्पीड 6 – 8 words per minute थी. और वर्ष 2019 में रिकॉर्ड ट्रान्सफर स्पीड 26.2 Terabits per second प्राप्त कर ली गयी. मतलब इतनी स्पीड से 1 GB की 3250 मूवी 1 सेकंड में डाउनलोड हो जाएगी.
महासागर में संसार के सभी महाद्वीप इंटरनेट के लिए ऑप्टिकल फाइबर केबल पर निर्भर है जो समुद्र के अन्दर से एक देश को दूसरे देश से जोड़ते है. मतलब ज्यादातर इंटरनेट ट्रैफिक इन्ही केबल से आता है और बहुत कम ट्रैफिक सैटेलाइट इंटरनेट से आता है. आज भी बहुत से लोगो को ये नहीं पता कि आपके मोबाइल में चलने वाले इंटरनेट का आधार (Backbone) ये ऑप्टिकल फाइबर केबल ही है जो समुद्र के अन्दर सबमरीन केबल के रूप में भी प्रयोग होते है. CNN की रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में 380 ऑप्टिकल फाइबर केबल्स है जिनकी लम्बाई 1.2 million kilometers (12 लाख किमी) है पहले आप ये सबमरीन कम्युनिकेशन केबल मैप देख लीजिये और देखिये कैसे ये पूरी दुनिया में फैला हुआ है.
अब नीचे का मैप देखिये जिसमे भारत के पांच शहर मुंबई, कोचीन, त्रिवेंदरम (Trivandrum), तूतीकोरिन और चेन्नई किस तरह इन केबल्स के द्वारा दूसरे देशो से जुड़े है. मैप में आपको जो रंग दिख रहे है वो केबल है.
इन केबल्स को बिछाने की जिम्मेदारी बहुत सारी कंपनिया लेती है. क्योंकि सबमरीन कम्युनिकेशन केबल ये समुद्र के द्वारा पूरे संसार को जोड़ती है तो खर्चा भी ज्यादा होता है. और इन केबल कंपनियों में गूगल, फेसबुक और अमेज़न जैसी कंपनियों ने पैसा लगा रखा है. अब हम ये जानेंगे कि इन केबल्स से जो नेटवर्क बना, मतलब समुद्र में केबल बिछाया गया फिर वो आपके देश में आया फिर शहरऔर फिर आपके घर में आया. इस तरह से ये एक नेटवर्क बन गया. अब इस नेटवर्क को अच्छे से समझने के लिए को हम इसे तीन भागो में बाट सकते है. इन नेटवर्क्स को इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) भी कह सकते है. क्योकि देश के अन्दर नेटवर्क को फैलाने का काम यही ISP ही करते है.
Tier(टियर) 1 ISP
पूरी दुनिया में इंटरनेट का आधार यही होते है. इसमे जो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर होता है उनके पास सारे दुनिया का Internet access होता है इसे आप नेशनल हाईवे भी कह सकते है.जो पूरी दुनिया के देशों को इंटरनेट के द्वारा जोड़ते है. इसमे वो सारी कंपनिया आती है जिनके पास ग्लोबल नेटवर्क होता है. ये Tier 2 को फीस के बदले में अपना नेटवर्क यूज करने के लिए देते है.
Tier(टियर) 2 ISP
इसमे वो सारी कंपनिया या इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आते है जो रीजनल या क्षेत्रीय नेटवर्क की सुविधा Tier (टियर) 3 को कुछ फीस के बदले में देते है. ये एक या 2 टियर 1 से जुड़कर टियर 3 को इंटरनेट नेटवर्क यूज करने के लिए देते है. जैसे स्टेट हाईवे, नेशनल हाईवे से जुड़कर शहरों को जोड़ता है. इसी तरह आप इसे स्टेट हाईवे (राज्य राजमार्ग) कह सकते है. जैसे- जिओ, एयरटेल, बीएसएनएल, वोडाफ़ोन आदि.
Tier(टियर) 3 ISP
इसमे वो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर आते है जो अंतिम उपभोक्ता या ग्राहकों को सीधे इंटरनेट से जोड़ते है. ये Tier(टियर) 2 से Band width खरीदकर देश के नागरिको को देते है. कोई भी ब्रॉड बैंड कंपनी जैसे जिओ फाइबर, तिकोना, एयरटेल ब्रॉडबैंड, Hathway आदि. आसान भाषा में आप इसे अपने शहर की गली कह सकते है.
भारत में इंटरनेट कैसे चलता है?
अन्य देशों से भारत कैसे जुड़ा है?
ऊपर के मैप में देख सकते है कि भारत में बाकि दुनिया से इंटरनेट ट्रैफिक मुंबई, कोचीन, त्रिवेंदरम (Trivandrum), तूतीकोरिन और चेन्नई के जरिये आता है और इसी रास्ते से भारत से बाहर जाता है. मैप में आपको रंग बिरंगे सबमरीन केबल दिख रहे होंगे. ये किसी देश में बन्दरगाह शहरो द्वारा प्रवेश करते है. और जहा पर ये केबल्स जमीन से जुड़ते है वो केबल लैंडिंग स्टेशन कहलाता है. इन स्टेशन की लिस्ट आप यहा देख सकते है. चलिए मै आपको इन स्टेशन के बारे में बता देता हूँ.
भारत में कुल 15 लैंडिंग स्टेशन है जो मुंबई, कोचीन, त्रिवेंदरम (Trivandrum), तूतीकोरिन और चेन्नई में है.
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- टाटा कम्युनिकेशन के पास 5 लैंडिंग स्टेशन है जिसमे में से 3 मुंबई,1 चेन्नई, और 1 कोचीन में है.
- Reliance Globalcom के पास 1 लैंडिंग स्टेशन है जो मुंबई में है.
- भारती एयरटेल के पास 3 लैंडिंग स्टेशन है इनमे में 2 चेन्नई में है और 1 मुंबई में है.
- Sify Technologies के पास 1 लैंडिंग स्टेशन है जो मुंबई में है.
- वोडाफ़ोन के पास 1 लैंडिंग स्टेशन है जो मुंबई में है.
- बीएसएनएल के पास तूतीकोरिन में 1 लैंडिंग स्टेशन है. जो श्री लंका और भारत को जोड़ता है.
कुछ प्रमुख सबमरीन केबल्स जो भारत से होकर गुजरते है
1. Tata TGN-Tata Indicom- केबल लम्बाई -3175 हजार किमी. चेन्नई और सिंगापुर के बीच. ये केबल टाटा कम्युनिकेशन द्वारा बिछायी गयी है.
2. Bharat Lanka Cable System– केबल लम्बाई-325 किमी. ये तमिलनाडु के तूतीकोरिन से श्रीलंका के कोलम्बो तक फैला है. ये सिस्टम बीएसएनएल और श्रीलंका टेलिकॉम के अंतर्गत आता है.
3. I2I Cable network-केबल लम्बाई -3200 किमी. लैंडिंग स्टेशन चेन्नई और सिंगापुर के बीच. ये केबल भारती एयरटेल द्वारा बिछायी गयी है.
4. SEA-ME-WE-3 (South East Asia Middle East Western Europe)- केबल लम्बाई – 39 हजार किमी. ये केबल संसार के 39 लैंडिंग स्टेशन को जोड़ता है. ये पश्चिमी यूरोप के देश बेल्जियम से होकर मिडिल ईस्ट और साउथ ईस्ट एशिया तक फैला है. ये नार्थ में दक्षिण कोरिया तक और दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया तक जाता है और ये भारत में सबसे पहले मुंबई को छूता है और फिर मुंबई से कोचीन और कोचीन से बाकि एशियाई देशो को जोड़ता है.
5. SEAMEWE-4
केबल लम्बाई – 20 हजार किमी. इसके रास्ते में 16 लैंडिंग स्टेशन आते है. जिसमे भारत में स्टेशन मुंबई और चेन्नई है. ये फ्रांस से शुरू होकर बांग्लादेश और सिंगापुर तक जाता है.
6. SAFE (South Africa Far East Cable)
केबल लम्बाई – 13500 किमी. इसमे 6 लैंडिंग स्टेशन आते है. जिसमे भारत का कोचीन भी है. ये साउथ अफ्रीका से शुरू होकर मलेशिया तक जाता है.
7. FLAG Europe-Asia (FEA) cable
यहा FLAG का पूरा नाम है Fiber Optic Link Around the Globe. केबल लम्बाई – 28000 किमी. वर्ष 2004 में रिलायंस ग्रुप ने इसे खरीद लिया था. ये केबल U.K (United Kingdom) से शुरू होकर मिस्र के स्वेज़ नहर से होकर मुंबई और जापान तक जाती है.
8. Chennai-Port Blair Submarine Cable System- केबल लम्बाई 2300 km इसे 2018 में शुरू किया गया था और बीएसएनएल द्वारा इसे पूरा किया गया. इसकी लगत थी 1224 करोड़.
यहा पर मैंने उन्ही केबल्स के बारे में बताया है जो भारत से भी होकर जाते है. इसके अलावा बहुत सारे केबल समुद्र में बिछाए गए है. जो अन्य देशो को जोड़ते है. याद रखिये ये ऑप्टिकल फाइबर केबल है.
इस प्रकार हम ये कह सकते है कि भारत पूरब में चेन्नई के द्वारा सिंगापुर से जुड़ा है, दक्षिण में कोचीन के द्वारा दक्षिण अफ्रीका से जुड़ा है और पश्चिम में मुंबई के द्वारा UAE से जुड़ा है.
भारत के अन्दर इंटरनेट कैसे चलता है?
जैसा कि मैंने बताया कि किस तरह दूसरे देशो से आये ऑप्टिकल फाइबर केबल भारत के केबल लैंडिंग स्टेशन से जुड़े है. अब ये देखते है ये भारत के अन्दर कैसे जाते है. टेलिकॉम कंपनिया इन स्टेशन से फाइबर केबल द्वारा शहरों को जोड़ते है और फिर ये केबल टेलिकॉम टावर से जोड़ दिए जाते है. ये टावर विद्युत् चुम्बकीय तरंगो (Electromagnetic wave) द्वारा आपके मोबाइल में सिग्नल भेजते है जिसके द्वारा आप इंटरनेट चलाते है. यहा पर भारतीय इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर या टेलिकॉम कंपनिया एक दूसरे को केबल द्वारा ट्रैफिक शेयर करते है. और ये सरकारी कंपनी National Internet Exchange of India (NIXI) के देखरेख में होता है.
यहा पर सरकारी कंपनी रेलटेल का भी भारत में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का बड़ा योगदान है. ये रेलवे ट्रैक के साथ ही ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाती है. ये अब तक 58000 km से ज्यादा दूरी कवर कर चुकी है और 6750 से ज्यादा रेलवे स्टेशन को पास करती है. अब यही पर National Optical Fibre Network का नाम आता है. इस प्रोजेक्ट को 2011 में भारत के 250000 गाँवों को को हाई स्पीड इंटरनेट से जोड़ने के लिए हुई थी. इसके लिए बीएसएनएल, रेलटेल और पावर ग्रिड द्वारा बिछाए गए केबल के द्वारा इंटरनेट की उपलब्धता की गयी. इसका लक्ष्य था हर ग्राम पंचायत को न्यूनतम 100Mbps की स्पीड दी जाये. इससे सम्बंधित मैप मै नीचे दिया हूँ जो अपडेटेड नहीं है. और फोटो की क्वालिटी भी अच्छी नहीं है. लेकिन आपके समझने के लिए काफी है.
Photo credit- railtelindia.com
क्या ये समुद्री केबल्स ख़राब हो सकती है ?
वर्ष 2008 में 6 बार ऐसा हुआ था जब ये केबल्स ख़राब हुई थी. और जब इस तरह से केबल्स को नुकसान पहुचता है तो उससे जुड़े सारे देशो में इंटरनेट स्पीड कम हो जाती है. कई बार जहाजो के एंकर से, पावर सिस्टम के फेल करने से भी ऐसा होता है. और कई बार तो ऐसा होता है कि केबल के ख़राब होने का कारण भी नहीं बताया जाता है. जनवरी 2008 में SEA-ME-WE 4 और FLAG केबल को नुकसान पहुचने से मिश्र, भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश आदि देशो इंटरनेट सेवा बाधित हो गयी थी.
2011 में UAE में भी केबल कटने से इंटरनेट प्रभावित हुआ था. वर्ष 2013 में म्यांमार में भी SEA-ME-WE 3 केबल में प्रॉब्लम होने से 1 महीने के लिए इंटरनेट सेवा लगभग ठप हो गयी थी.
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इंटरनेट का संचार एक देश से दूसरे देश के बीच समुद्री केबल से, फिर देश के अन्दर शहरो के बीच ऑप्टिकल फाइबर केबल द्वारा और शहरो में भी मोबाइल टावरों के बीच फाइबर केबल से और टावरों से आपके मोबाइल में रेडियो तरंगो द्वारा इंटरनेट का संचार होता है. दुनिया भर में बड़े बड़े पावरफुल कंप्यूटर जिन्हें हम सर्वर कहते है, वो सभी सर्वर्स एक दूसरे से जुड़े हुए है और एक दूसरे को डाटा का आदान प्रदान करते है. और ऐसे ही इन्टरनेट बनता है. इंटरनेट की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) से हुई थी. अब इन्टरनेट पर किसी का भी कण्ट्रोल नहीं है. अगर अमेरिका इन्टरनेट पर बैन भी कर दे तब भी बाकि देश एक दूसरे से सर्वर से जुड़कर इन्टरनेट को जारी रख सकते है. हाँ क्या इंटरनेट समुद्र में पानी के नीचे से सारे दुनिया में जाता है. समुद्र में इंटरनेट को ले जाने के लिए सबमरीन कम्युनिकेशन केबल बिछाए गए है. और ये केबल पूरी दुनिया में फैले इन्टरनेट का बैक बोन है. इंटरनेट पर डाटा सर्वर पर होता है. सर्वर पावरफुल कंप्यूटर होते है.इंटरनेट कैसे चलता है FAQs
इंटरनेट का संचार दो देशों के बीच कैसे होता है?
इंटरनेट कहां से आता है?
इंटरनेट कौन सा देश का है?
क्या इंटरनेट पानी के नीचे से आता है?
इंटरनेट पर डाटा कहा स्टोर होता है?
दोस्तों मुझे पूरा यकीं है कि ये पोस्ट इंटरनेट कैसे चलता है हिंदी में (Internet Kaise Chalta Hai ) आपको जरुर पसंद आई होगी. और आपको काफी कुछ समझ आ गया होगा कि किस तरह दुनिया में ऑप्टिकल फाइबर केबल का जाल बिछा हुआ है. और भारत किस तरह इंटरनेट प्राप्त करता है. इसी तरह सारे देश इंटरनेट से जुड़े है. दोस्तों इस पोस्ट से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो आप कमेंट करके पूछ सकते है.और इसे सोशल मीडिया पर फेसबुक, व्हात्सप्प, ट्विटर आदि पर शेयर जरुर करियेगा.
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